१९ मई को राहुल गाँधी की उत्तर प्रदेश के अहरौरा में सभा चल रही थी..उसी समय मेरे एक पत्रकार मित्र ने फ़ोन किया और कहा कि देश का पर्यटन मंत्री आपके करीब पहुंचा है आप वहां है कि नहीं ? मैंने राहुल गाँधी के लिए यह संबोधन पहली बार सुना था...मुझे क्षण भर में ही विश्वास हो गया कि मेरा कमजोर राजनीतिक ज्ञान अब शुन्य हो चला है...मैंने अपने मित्र से पूछा कि भाई यह राहुल गाँधी ने पर्यटन मंत्रालय कब संभाला? सवाल का अंत हुआ ही था कि जवाब शुरू हो गया मानो मित्र महोदय सवाल के लिए पहले ही से तैयार थे....खैर एक अखबार में कार्यकारी संपादक का पद संभाल रहे मित्र ने बताया कि उन्होंने राहुल गाँधी का यह पद स्वयं सृजन किया है...क्योंकि राहुल गाँधी पूरे देश के पर्यटन पर ही रहते हैं....लिहाजा उनके लिए इससे अच्छा मंत्रालय और क्या हो सकता है....मैं मित्र के तर्क से सहमत हो रहा था...अब तो मैं मित्र की बात आगे बढा रहा था..लगे हाथ मैंने राहुल को पर्यटन मंत्री नहीं बल्कि स्वयंभू पर्यटन मंत्री का दर्जा दे दिया....
वैसे मेरी इस बात से हाथ का साथ देने वाले खुश नहीं होंगे लेकिन कमल और हाथी के सवारों को बोलने का मौका मिलेगा....राहुल गाँधी का अहरौरा दौरा वाकई शानदार रहा...मैं वहां गया तो नहीं लेकिन जो लोग गए थे उन्होंने भीड़ के लिहाज से इस दौरे को सफल बताया.....अपने पूरे भाषण में राहुल ने कहीं भी इलाके में नक्सल आतंक के बारे में बातचीत नहीं की ...मतलब साफ़ था ....राहुल उस दाग को अपने सफ़ेद कुरते पैजामे पर लगने देने से बच रहे थे जिसे देश पर लम्बे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने दिया था...सोनभद्र के जंगलों में नक्सल की पौध जिस कमजोर राजनीति ने उगाई राहुल उसी राजनीति की नयी पौध लगते हैं.....आखिर क्या कारण था की राहुल इस ज्वलंत मुद्दे पर ख़ामोशी की चादर ओढ़े रहे.......
मैं यहाँ राहुल के अहरौरा दौरे के सहारे महज कांग्रेस सरकार की नक्सल और माओवाद जैसी समस्याओं पर नीतियों की ओरे इशारा करना चाहता हूँ....जिस तरीके से नक्सलियों ने पश्चिमी मिदनापुर में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को निशाना बनाया उससे तो यही लगता है की इस देश में सरकार का खौफ इन दहशतगर्दो को नहीं है......देश में नक्सल वाद किस कदर अपनी पहुँच बढ़ा चुका है उसकी एक छोटी सी झलक दिखाने के लिए आपको एक ख़बर से रूबरू कराता हूँ.....मिदनापुर में रेल को निशाना बनाया गया और वाराणसी में पिछले दो दशकों से देश के इन दुश्मनों को कारतूस पहुँचाने वाला एक व्यक्ति पुलिस की हिरासत में आया..... इन दोनों ख़बरों से साफ़ है कि देश के हर कोने में नक्सलवाद अपनी जड़े जमा चुका है.....
केंद्र सरकार अभी भी नक्सलवादियों से बातचीत कर रही है....दंतेवाड़ा में जवानों को मौत की नींद सुलाने वाले नक्सलियों ने अब मासूम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.....झारग्राम में ट्रेन को निशाना बना कर नक्सल वादियों ने बता दिया है की अब वो नक्सलबाड़ी की सरहद से बहुत दूर चले आयें हैं....साथ ही अब उनकी वैचारिक लड़ाई अपनी राह से भटक चुकी है..... ऐसे में वंचित समाज की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले नक्सलवादियों से देश को खतरा उत्पन्न हो गया है.....
केंद्र सरकार की इस पूरे मुद्दे पर जो रणनीति है वो आम जनता में विश्वशनीय नहीं है.......झारग्राम में हुए हादसे के बाद जिस तरीके से इसके लिए जिम्मेदार तत्वों को लेकर विरोधाभाषी बयान जारी हुए वो इसका सबूत है....ये ठीक है की सरकार बिना किसी ठोस सबूत के कुछ भी नहीं कहना चाह रही थी...लेकिन कम से कम उसके जिम्मेदार मंत्री ये तो कह सकते थे की यदि इसमें किसी भी तरह से नक्सलवादियों या माओवादियों का हाथ हुआ तो उन्हें छोड़ा नहीं जायेगा...इससे देश की जनता को एक सन्देश जाता और सरकार की आतंरिक सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे को सुलझाने के प्रति इच्छाशक्ति (भले ही दृढ नहीं ) तो जाहिर होती, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया बल्कि पूरी घटना पर एक रहस्य का आवरण डाल दिया.....ऐसे में साफ़ है की अब ये मुद्दा भी राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है...कोई भी बयान या कदम उठाने से पहले राजनीतिक लाभ और हानि की पड़ताल की जा रही है...
वैसे मेरी इस बात से हाथ का साथ देने वाले खुश नहीं होंगे लेकिन कमल और हाथी के सवारों को बोलने का मौका मिलेगा....राहुल गाँधी का अहरौरा दौरा वाकई शानदार रहा...मैं वहां गया तो नहीं लेकिन जो लोग गए थे उन्होंने भीड़ के लिहाज से इस दौरे को सफल बताया.....अपने पूरे भाषण में राहुल ने कहीं भी इलाके में नक्सल आतंक के बारे में बातचीत नहीं की ...मतलब साफ़ था ....राहुल उस दाग को अपने सफ़ेद कुरते पैजामे पर लगने देने से बच रहे थे जिसे देश पर लम्बे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी ने दिया था...सोनभद्र के जंगलों में नक्सल की पौध जिस कमजोर राजनीति ने उगाई राहुल उसी राजनीति की नयी पौध लगते हैं.....आखिर क्या कारण था की राहुल इस ज्वलंत मुद्दे पर ख़ामोशी की चादर ओढ़े रहे.......
मैं यहाँ राहुल के अहरौरा दौरे के सहारे महज कांग्रेस सरकार की नक्सल और माओवाद जैसी समस्याओं पर नीतियों की ओरे इशारा करना चाहता हूँ....जिस तरीके से नक्सलियों ने पश्चिमी मिदनापुर में ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को निशाना बनाया उससे तो यही लगता है की इस देश में सरकार का खौफ इन दहशतगर्दो को नहीं है......देश में नक्सल वाद किस कदर अपनी पहुँच बढ़ा चुका है उसकी एक छोटी सी झलक दिखाने के लिए आपको एक ख़बर से रूबरू कराता हूँ.....मिदनापुर में रेल को निशाना बनाया गया और वाराणसी में पिछले दो दशकों से देश के इन दुश्मनों को कारतूस पहुँचाने वाला एक व्यक्ति पुलिस की हिरासत में आया..... इन दोनों ख़बरों से साफ़ है कि देश के हर कोने में नक्सलवाद अपनी जड़े जमा चुका है.....
केंद्र सरकार अभी भी नक्सलवादियों से बातचीत कर रही है....दंतेवाड़ा में जवानों को मौत की नींद सुलाने वाले नक्सलियों ने अब मासूम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है.....झारग्राम में ट्रेन को निशाना बना कर नक्सल वादियों ने बता दिया है की अब वो नक्सलबाड़ी की सरहद से बहुत दूर चले आयें हैं....साथ ही अब उनकी वैचारिक लड़ाई अपनी राह से भटक चुकी है..... ऐसे में वंचित समाज की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले नक्सलवादियों से देश को खतरा उत्पन्न हो गया है.....
केंद्र सरकार की इस पूरे मुद्दे पर जो रणनीति है वो आम जनता में विश्वशनीय नहीं है.......झारग्राम में हुए हादसे के बाद जिस तरीके से इसके लिए जिम्मेदार तत्वों को लेकर विरोधाभाषी बयान जारी हुए वो इसका सबूत है....ये ठीक है की सरकार बिना किसी ठोस सबूत के कुछ भी नहीं कहना चाह रही थी...लेकिन कम से कम उसके जिम्मेदार मंत्री ये तो कह सकते थे की यदि इसमें किसी भी तरह से नक्सलवादियों या माओवादियों का हाथ हुआ तो उन्हें छोड़ा नहीं जायेगा...इससे देश की जनता को एक सन्देश जाता और सरकार की आतंरिक सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे को सुलझाने के प्रति इच्छाशक्ति (भले ही दृढ नहीं ) तो जाहिर होती, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया बल्कि पूरी घटना पर एक रहस्य का आवरण डाल दिया.....ऐसे में साफ़ है की अब ये मुद्दा भी राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है...कोई भी बयान या कदम उठाने से पहले राजनीतिक लाभ और हानि की पड़ताल की जा रही है...
अगर यही हाल रहा तो नक्सलवाद ख़त्म हो पायेगा इसमें शक है...
सरकार ने ट्रेनों पर हमले रोकने का जो तरीका ईजाद किया है वो लाजवाब है..अब ट्रेने ही नहीं चलायी जाएँगी...अगर किसी दिन सरकार आप से कहे की आप के शहर में नक्सली हमला करने वाले हैं लिहाजा अपने घर छोड़ कर भाग जाइये तो इसमें कोई हैरानी मत प्रदर्शित कर दिजीयेगा.......आखिर हमारी सरकार इस समस्या से निबट जो रही है उसकी कीमत हमें और आपको तो ख़ुशी ख़ुशी चुकानी ही होगी न.....क्यों 'सरकार' ?
bahut badhiya sir, kaafi dino baad post likhi?
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