देश में आजकल अन्ना की चर्चा है। हर ओर अन्ना ही अन्ना नजर आ रहे हैं। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ ने पूरे देश को अन्नामय कर दिया है। अन्ना के समर्थन में देश का एक बड़ा वर्ग सड़कों पर उतर आया है। कोई अनशन कर रहा है तो कोई गा-बजा कर अन्ना का साथ दे रहा है। कई लोग ऐसे भी हैं जो सड़कों पर प्रदर्शन तो नहीं कर रहे हैं लेकिन मुंह से अन्ना के साथ होने की बात कह रहे हैं। इन सब के बीच एक बात सामान्य है। सभी सालों से जिस थूक को घोंट रहे थे उसे जी भर के वहां थूक रहे हैं जहां थूकना चाह रहे हैं। वैचारिक रूप से अन्ना ने देश की ऐसी रग पर हाथ रखा है जिसकी ओर कोई देख भी ले तो दर्द उभर आता है। अन्ना ने उसी रग को दबा दिया है। जनता की वो भीड़ जो राजनीतिक रूप से लोकतंत्र का हिस्सा है चिल्ला रही है। ये भीड़ व्यवस्था के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त करने का यह मौका जाने नहीं देना चाहती है।
राजनीतिक रूप से असंतुष्ट भारत के पास विकल्प बहुत कम हैं। जो हैं भी उनका उपयोग सीमित है और उनका उपयोग कर पाने के लिए लम्बा इंतजार भी करना पड़ता है। लिहाजा अंदर ही अंदर एक घुटन सी होने लगी है। रातों रात सिस्टम को बदला नहीं जा सकता है। यह एक लम्बी प्रक्रिया है और इसमें समय लगता है। बीच-बीच में अवरोध भी बहुत आते हैं। सिस्टम को कोसे बिना इस लम्बे समय को नहीं काटा जा सकता है। आमतौर पर सिस्टम में बदलाव की सोच हमारे दिमाग से निकलकर चाय की दुकान तक जाती है और फिर लौट आती है। ऐसे में यदि आपको अन्ना जैसा नेतृत्व कर्ता मिल जाये और अपनी भड़ास निकालने के लिए दिल्ली का रामलीला मैदान तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। मन में कसक सबके है। सताये हुये सब हैं। इस देश का हर चौक तहरीर चौक बनने की उम्मीद लगाये बैठा है। यही वजह है कि जैसे ही उसे मौका मिलता है कम से कम वो जंतर-मंतर का रूप तो ले ही लेता है। कुछ युवाओं की टोली आती है हाथों में तिरंगा लहराते हुये और चीख-चीखकर अपनी आवाज बुलंद करती है और आगे बढ़ जाती है।
ऐसा नहीं है कि जो सड़कों पर निकल पा रहे हैं वही भड़ास निकाल पाने का संपूर्ण आनंद ले रहे हों। घरों में भी चर्चा होती है और व्यवस्था को कोसा जा रहा है। अन्ना और उनकी टीम का जन लोकपाल बिल इस देश को कुछ नया दे पायेगा या बिलों के बिल में कहीं खो जायेगा ये तो पता नहीं। लेकिन फिलहाल देश के हर उस नागरिक को अन्ना हजारे के नाम पर छूट है कि वो बदबूदार सिस्टम के प्रति नाराजगी जता सके।
ऐसा नहीं है कि जो सड़कों पर निकल पा रहे हैं वही भड़ास निकाल पाने का संपूर्ण आनंद ले रहे हों। घरों में भी चर्चा होती है और व्यवस्था को कोसा जा रहा है। अन्ना और उनकी टीम का जन लोकपाल बिल इस देश को कुछ नया दे पायेगा या बिलों के बिल में कहीं खो जायेगा ये तो पता नहीं। लेकिन फिलहाल देश के हर उस नागरिक को अन्ना हजारे के नाम पर छूट है कि वो बदबूदार सिस्टम के प्रति नाराजगी जता सके।
WELL I THINK EVEN THEY R COMING OUT WITH THIS ALL START BY ANNA AND GO TO JANTAR MANTAR THTS ENOUGH THAN NT TO DO ANYTHNG ABT CORRUPTION AT LEAST SOME ONE TOOK A START ONLY ONE BRAVE MAN INDIA GOT IN 64 YEARS DSNT MATTR IF IT WILL SUCESS OR NT HE STAND UP THTS ALSO CAN BE A START.
जवाब देंहटाएंji Ashish bhaiya you are right to say that , anna ne jo alakh jagayi hai hume use sada le ke chalna hai, na to hum bhrastachar kerenge aur na hi karne denge ..
जवाब देंहटाएं