चौंसठ सालों से हम सब अपनी थूक इसलिए निगलते आ रहे हैं क्योंकि सरकारी कागजों में सार्वजनिक स्थानों पर थूकना अपराध है। लिहाजा घोंट कर ही काम चलाना पड़ता है। लेकिन आज जब मौका मिला है तो देश का आम आदमी पीछे नहीं रहना चाहता है। वो जी भर के थूकना चाहता है उस सिस्टम के मुंह पर जो उसे आम आदमी का नाम तो देता है लेकिन सहूलियत जानवरों से भी बदतर। यही वजह है कि मुझे भी थूक पार्ट टू लिखने की अन्र्तप्रेरणा मिली। कुछ लोगों को जरूर बुरा लगा होगा और लग भी रहा होगा इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं। लेकिन एक बात भी लगे हाथ बता देना चाहता हूं कि अगर आज आपने इस सड़ चुके सिस्टम पर नहीं थूका तो आपका कल आप पर थूकेगा। मर्जी आपकी आखिर मुंह है आपका।
सड़ चुके सिस्टम के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से आवाज उठाना जनता का संवैधानिक अधिकार है। सरकार उसे छीन नहीं सकती है। आज देश में वही हो रहा है। हम कागजातों में लोकतंत्र और गणतंत्र में जी रहे हैं लेकिन सच यही है हम भ्रष्टतंत्र में जी रहे हैं। 15 अगस्त उन्नीस सौ सैंतालिस से लेकर अब तक इस देश की जनता ने पल-पल जो मौत कबूली है आज उनमें से कुछ का हिसाब किताब हो रहा है।
अब भी वक्त है। सफेदपोशों को समझ लेना होगा कि देश परिवर्तन चाहता है। उन्हें अपना कुर्ता सलामत रखना है तो इस मुगालते में न रहे कि लोगों के मुंह पर ताले लगे हैं। वरना संसद के गलियारों में हवा का रुख बदलते देर नहीं लगती। खुदा न करे अगर यह हवा दिल्ली के रामलीला मैदान की ओर बह निकली तो फिर नौटंकी करने का काम भी आप सब को नहीं मिलेगा।
बोलिए जनता जनार्दन की जय।।
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