एक पुरानी कहावत है, मियां मुसद्दी कहते थे। जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो। अब आप इस चक्कर में मत पडि़ये कि ये कहावत मुसद्दी ने कही थी या किसी और ने। बात को पकडि़ये। पकड़ ली। अरे अपने बुखारी मियां। साहब इस देश के मुसलमानों को समझा रहे हैं कि देश भक्ति के नारे मत लगाओ। हाथ में तिरंगा मत लो। कोई कहे कि हिन्दुस्तान जिंदाबाद तो उसके सुर में सुर मत मिलाओ। अन्ना का साथ मत दो। जनलोकपाल बिल में मुसलमानों के लिए कुछ खास नहीं है। लिहाजा जनलोकपाल बिल के चक्कर में मत पड़ो। बुखारी अपने भाई लोगों को समझा रहे हैं कि इस्लाम क्या है। बुखारी फरमान दे रहे हैं कि अन्ना का समर्थन मत करो क्योंकि इस्लाम इसकी अनुमति नहीं देता।
इतने उदाहरण काफी हैं थाली में छेद करने के कि कुछ और दूं। इतने में तो थाली छलनी बन जायेगी। मियां बुखारी की यही देशभक्ति है। इस देश में यही होता है।जि स थाली में खाओ उसी में छेद करो। लोकपाल हो या जनलोकपाल हो दोनों में पूरे देश की बात हो रही है। यह बात दीगर है कि कोई अन्ना का समर्थन कर रहा है और कोई नहीं। करप्शन के खिलाफ सभी हैं। लेकिन इसमें मियां बुखारी मुसलमानों के लिए अलग से व्यवस्था चाहते हैं। क्या चाहते हैं यह तो वहीं जाने लेकिन दिल दुखता है और भुजाएं फड़कती हैं यह सुन कर। कभी कभी बेहद अफसोस होता है यह सोचकर कि हमने सहिष्णुता का पाठ क्यों पढ़ा। आजाद और भगत से कहीं अधिक गांधी को क्यों महत्व दिया। यह इसी देश में हो सकता है। कोई खुद तो थाली में छेद करे ही औरों को भी करने की सलाह दे।इस देश में कसाब को पाल कर रखा जाता है। इस देश में अफजल की खैरियत का पूरा ख्याल रखा जाता है। अजहर मसूद को बाइज्जत उसके साथियों के हवाले कर दिया जाता है। मौका मिलता है तो तिरंगे को जला भी दिया जाता है।
बुखारी बाबा इसकी इजाजत कौन देता है। यही है आपका अपना बनाया इस्लाम। अब देश के मुसलमान कम से कम इतना इस्लाम तो जानते ही हैं कि मुल्क से बढ़कर कोई नहीं होता। लेकिन आप का क्या करे मियां बुखारी। आप हिंदुस्तान में है न लिहाजा आपको पूरी छूट है।
इस्लाम मक्कार व हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाली 'शैतानी' सत्ता है जो दीन के नाम पर मोहम्मदियों में काम कर रही है। यदि बुखारी या कोई और कहता कि देश के प्रति नमन इस्लाम विरोधी है तो सेना, पुलिस तथा अन्य राजकीय सेवाओं में जहां ध्वज व चिह्न तथा जय हिंद कहना अनिवार्य है, में मुस्लिम न जाएं तथा जो हैं वे इस्तीफा दें। तो समझ आती कि हिम्मत है बुखारी की। सरकार की हज के नाम की सब्सिडी के बिना जाएं हज करने तो समझ आती कि हिम्मत है बुखारी की। अपने दीन के लिए, मदरसे के लिए सरकारी अनुदान से दूर रहने की बात करता तो समझ आती कि हिम्मत है बुखारी की। नहीं कदापि नहीं। वह जानता है कि देश के आंदोलनों में न तो आजादी पूर्व मोहम्मदिए शामिल हुए थे(30 लाख कांग्रेस सदस्यों में 10 हजार मोहम्मदिए 1946 में) न अब होंगे (रामलीला मैदान में 30 हजार में 300 भी नहीं थे जब अन्ना टीम ने रोजा अफ्तारी कराई थी) इसलिए बयान दे रहा है कि मोहम्मदिए अन्ना से दूर रहें। लाभ वाले काम जो इस्लाम में हराम कहे जाते हैं करने वालों को चेताया है कभी इस बुखारी ने, सिनेमा मीडिया को हराम कितनी बार कहा इस या इसके बाप बुखारियों ने, भारत माता के चित्र में दिक्कत है मीना कुमारी के पाकीजा के चित्र को आज भी संभाले मिल जाएंगे, दिलीप कुमार से लेकर नए सारे खानों के चित्र लगा लेंगे। तब याद नहीं रहता कि चित्र हराम है। चित्र-चलचित्र की आमदनी हराम है। दारू हराम है। बजाज हराम है।
जवाब देंहटाएंमुसलमानों में इतनी हिम्मत भी नहीं है कि वे कह सकें कि हम अन्ना या किसी को सहयोग करें या विरोध बुखारी को कोई हक नहीं बीच में बोलने का वह अपनी नमाज पढ़वाने के काम तक सीमित रहे यह लोकतांत्रिक देश है जहां हर व्यक्ति को अपनी इच्छा से पंथ चयन का अधिकार रखता है, किसी को पंथ के नाम पर अपनी बात मनवाने का हक नहीं मिला हुआ है। सच तो यह है कि ये मोहम्मदिए इस देश के वे ही कायर लोग हैं जिनके पूर्वज स्वार्थों तथा कमजोरियों के कारण सौ, दो सौ, पांच सौ साल पहले मोहम्मदिए हुए थे।
तुमने तो सारे लोगो को लपेट लिया???इस लेख में तत्वदर्शिता कम,बकवास ज्यादा झलक रही है..
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