दिल्ली में प्रशांत भूषण पर हुआ हमला निंदनीय है इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन हमले के पीछे की वजहों को भी तलाशना बेहद जरूरी है। आखिर क्या वजह रही होगी कि इंदर वर्मा को ऐसा दुःसाहस करना पड़ा। क्या टीम अन्ना को लगने लगा है कि अब वो जो चाहेगी वो करवा सकती है ? क्या टीम आत्ममुग्धता की स्थिती में आ चुकी है ?
कोर्ट में किसी वकील को उसी के चैंबर में घुस का मारना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन इंदर वर्मा और उसके साथियों की नाराजगी इस कदर रही होगी कि उन्हें इस बात का भी डर नहीं रहा कि प्रशांत भूषण पर हमला करने के बाद उनके साथ क्या होगा। साफ है कि टीम अन्ना के व्यवहार से देश का एक वर्ग दुखी है। उसे लगने लगा है कि टीम अन्ना का मन बढ़ गया है। हालांकि टीम अन्ना ने हमेशा से इस बात का हवाला दिया है पूरा देश उनके साथ खड़ा है। अगर ऐसा है तो इंदर कहां रह गया था। इंदर इस देश में नया तो नहीं आया है। इंदर का गुस्सा शब्दों में बयां नहीं हो सकता था। ऐसा इंदर को लगा होगा। तभी तो उसने यह रास्ता चुना।
अन्ना और उनकी टीम देश में व्याप्त प्रशासनिक भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहती है। देश के लोग भी यही चाहते हैं। लेकिन शुरुआत का सिरा नहीं मिल रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ देश का हर नागरिक अपनी लड़ाई अपने तरीके से लड़ रहा है। आम आदमी ने जब देखा कि अन्ना और उनके साथ कुछ पढ़े लिखे लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में देश की सर्वोच्च सत्ता से लोहा लेने को तैयार हैं तो स्वतः स्फूर्त तरीके से उनके साथ हो चले।
भ्रष्टाचार और लोकपाल के मुद्दे पर बोलते-बोलते जब टीम अन्ना ने और मुद्दों की ओर रुख किया तो बात बिगड़ने लगी। अन्ना हजारे के प्रमुख सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने कह दिया कि देश की संसद से भी उपर अन्ना हैं। इसके बाद प्रशांत भूषण ने वाराणसी में बयान दिया कि कश्मीर को भारत से अलग कर देना चाहिये। इस बयान को देने के पीछे क्या वजह रही होगी यह तो प्रशांत जी ही जाने। लेकिन इतना तो जरूर है कि मीडिया के सामने आप इस तरह की राय रखेंगे तो उसका रियेक्शन तो होगा ही। अगर प्रशांत भूषण प्रेस से मिलिये कार्यक्रम में अन्ना के सहयोगी के तौर पर बोल रहे थे तो उन्हें सिर्फ लोकपाल और भ्रष्टाचार को ही बोलने का विषय बनाना चाहिये। बजाये इसके कि वो कश्मीर और नक्सलवाद पर बोलें। ऐसा बोलने पर लगता है मानों टीम अन्ना अब राजनीतिक होने लगी है।
इंदर को श्रीराम सेना का कार्यकर्ता बताया जा रहा है। लेकिन गौरतलब है कि श्रीराम सेना क्षेत्रीय विवादों से उपजा एक वर्ग है लेकिन रहता भारत में ही है। वह भी भ्रष्टाचार से उतना ही पीडि़त है जितना और लोग हैं। मैं एक बार फिर उस बात को याद दिलाना चाहूंगा जिसका हवाला अन्ना हजारे देते रहे हैं। वह है देश के सभी लोगों के उनकी मुहिम में साथ होने का हवाला। लेकिन लगता है ऐसा नहीं है। प्रशांत भूषण का कहना है कि श्रीराम सेना पर रोक लगनी चाहिये। यहां लगता है कि श्रीराम सेना के प्रति प्रशांत जी की नाराजगी नितांत व्यक्तिगत है। वरना श्रीराम सेना के खिलाफ उन्हें पहले ही आवाज उठानी चाहिये थी। यानी प्रशांत जी का विरोध का यह तरीका सही नहीं माना जा सकता। कुल मिलाकर प्रशांत जी के साथ-साथ पूरी टीम अन्ना को यह मान लेना चाहिये कि इस देश में कई ऐसे लोग हैं जो उनके कामकाज और बयानबाजी से नाराज हैं।
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