



पिछले छह दशक से देव साहब नवकेतन के बैनर तले फिल्में बनाते रहे। इतने लम्बे समय सक्रिय रहना साधारण बात नहीं। नवकेतन के बैनर तले बनी कई फिल्में फ्लॉप हो गयीं लेकिन देवसाहब कभी रुके नहीं। 1950 में फिल्म 'अफसर' से शुरु हुआ सिलसिला 2011 में चार्जशीट तक चलता रहा। बाजी, आंधियां, हमसफर, टैक्सी डाइवर, हाउस नं. 44, फंटूश, काला पानी, काला बाजार, हमदोनों, तेरे घर के सामने, ज्वेलथीफ, प्रेमपुजारी, शरीफ बदमाश, हीरा-पन्ना जैसी फिल्में नवकेतन और देवसाहब ने हमें दी हैं। देवसाहब ने कई चेहरों को भी हिंदी फिल्म जगत में पहचान दिलाई। इनमें गुरुदत्त, जयदेव, राज खोसला, जानी वाकर, किशोर कुमार, यश जौहर, सुधीर लुधायनवी, शत्रुघ्न सिंहा, जैकी श्राफ, तब्बू, उदित नारायण और अभिजीत के नाम शामिल हैं। जाने फिल्म निर्माता निर्देशक शेखर कपूर देव साहब की बहन के लड़के हैं और फिल्म निर्माण का ककहरा उन्होंने अपने मामा देवसाहब से ही सीखा है।
देव साहब न सिर्फ फिल्मों में नायक का किरदार अदा करते थे बल्कि वास्तविक दुनिया के लिए भी एक नायक थे। इसका उदाहरण है इमरजेंसी का विरोध। इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल का देवसाहब ने पूरजोर विरोध किया था। जबकि फिल्म जगत के और किसी ने हिम्मत नहीं दिखाई। देवसाहब का रोमांच यही था कि हमारे दादा और पिता भी हमेशा देवसाहब की तरह युवा दिखना चाहते थे तो आज का युवा भी देवसाहब की तरह दिखने से गुरेज नहीं करता। देव साहब कहते थे, 'कि मैं यह नहीं सोचता कि मैं जवान था बल्कि यह सोचता हूं कि मैं आज भी जवान हूं।' देव साहब का यह कहना उनके करोड़ों चाहने वालों के लिए सू़त्र वाक्य है लेकिन आज यही वाक्य बेहद चुभ भी रहा है क्योंकि वक्त ने भरी जवानी में देव साहब को मौत की नींद सुला दी।
ओह देवसाहब! आप लौट आइये।
evergreen star.........लेना होगा जनम तुम्हे कई-कई बार....... !
जवाब देंहटाएं