नई दिल्ली में बिजली बिलों के मुद्दे पर अनशन पर बैठे अरविंद केजरीवाल आखिर किसी आदमी की बात कर रहे हैं ये एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। यकीनन इस देश की राजनीति आजादी के साठ दशक बाद भी बिजली, सड़क और पानी के इर्द गिर्द ही घूम रही है। राजनीतिज्ञों ने इस देश के हर इलाके तक बिजली, सड़क और पानी को न जाने पहुंचाने की मशक्कत की या फिर न पहुंचाने की इसका फर्क भी अब मुश्किल हो गया है। फिलहाल इस बहस से आगे निकल कर राजनीति में आने की जद्दोजहद में लगे अरविंद केजरीवाल की।
अरविंद केजरीवाल और आवाम से जुड़ने की उनकी कोशिश पर चर्चा करने से पहले हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि अरविंद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राजनीतिक परिदृश्य में आना कैसे चाहते हैं। अरविंद केजरीवाल असंतोष और मूक बना दिए जाने का दंश झेल रही जनता के लिए बहुत हद तक एक क्रान्तिकारी के रूप में आए। तब उनके साथ अन्ना हजारे थे। ये वही अरविंद हैं जो पहले राजनीति में आने से इंकार करते रहे और इसके बाद आ भी गए। हालांकि इस दौरान उन्हें अन्ना का साथ छोड़ना पड़ा। यहां एक सवाल पैदा होता है कि क्या अरविंद हर हाल में राजनीति में आना ही चाहते हैं। चाहें इसके लिए उन्हे अन्ना जैसे सहयोगियों का साथ छोड़ना ही पड़े।
अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली में बिजली के बिलों को मुद्दा बनाया और अनशन पर बैठ गए। अरविंद के अनशन के दौरान न लोगों की भीड़ जुटी और न ही मीडिया का रेला लगा। सवाल पैदा होना लाजमी है कि आखिर ये दोनों ही क्यों नदारद रहे। अरविंद केजरीवाल ने अनशन स्थल से अपील की और कहा कि लोग बिजली के बिल न जमा करें। इस अपील का कोई खास असर नहीं हुआ। बिजली कंपनियों के ओर से जारी बयान में बताया गया कि बिजली के बिलों का पूरा भुगतान लोगों ने किया है। तो इस बात के ये माएने निकाले जा सकते हैं कि अरविंद जिन मुद्दों और जिस तरीके से जनता के बीच पैठ बनाना चाह रहे हैं वो प्रभावशाली नहीं हैं।
वहीं दूसरी ओर अन्ना हजारे आज भी अपने पुराने तरीके पर कायम हैं। वो लोगों के बीच जाकर उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं। सिस्टम से लड़ने के लिए वो सिस्टम में प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं कर रहे हैं लेकिन जिन लोगों के लिए सिस्टम बना है उन्हें सिस्टम की खामी समझा रहे हैं। ये ठीक वैसा ही जैसे किसी ग्राहक को उसके खरीदे गए सामान की गुणवत्ता के बारे में बताया जा रहा हो। अन्ना हजारे को लगता है कि जब ग्राहक खुद जागरुक होगा तो सिस्टम में खामियां नहीं डाली जा सकतीं।
आम आदमी पार्टी बनाने के बाद अरविंद का कद बढ़ा है घटा है इसका आकलन तो वो खुद ही करें तो अच्छा लेकिन इतना जरूर है कि वो जिस आम आदमी की बात कर रहे हैं उसके लिए बिजली इतना बड़ा मुद्दा है तो वो क्यांे नहीं अरविंद के साथ जुड़ रहा है।
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