यूपी के गौतम बु़द्ध नगर की एसडीएम दुर्गा शक्ति के निलंबन के बाद जिस तरह से अखिलेश सरकार घेरे में आई है उससे साफ हो चला है कि देश के सबसे बड़े सूबे में सपा की सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश से कहीं अधिक उनके रिश्तेदारों का प्रभाव है। गौतम बुद्ध नगर की एसडीएम दुर्गा शक्ति को अखिलेश सरकार ने निलंबित कर के यह साफ कर दिया है सूबे में ईमानदार अफसरों को काम नहीं करने दिया जाएगा। दुर्गा शक्ति को निलंबित करने के पीछे अखिलेश सरकार ने बड़ा अजीब तर्क दिया। पहली बार तो लगा कि सपा सरकार ने अपने बनने के बाद से हुए 27 दंगों से सबक ले लिया है लेकिन जल्द ही सच्चाई सामने आ गई। अखिलेश सरकार ने कहा कि गौतमबुद्ध नगर में एक मस्जिद की दिवार एसडीएम दुर्गा शक्ति ने गिरवाई है। इससे धार्मिक उन्माद पैदा होने का खतरा है लिहाजा एसडीएम को निलंबित करना जरूरी है। यूपी सरकार के इस फैसले के खिलाफ समूचे देश की नौकरशाही के एकजुट होने के बाद इस घटना के जांच के आदेश दिए गए। उसमें साफ हो गया कि दिवार एसडीएम ने नहीं गिरवाई। यहां एक और बात गौर करने वाली है। जिस दिवार को गिराए जाने को यूपी की समाजवादी सरकार सांप्रदायिक चश्मे से देख रही है उसे बचाने के लिए किसी ने कोई प्रयास नहीं किए। और न ही एसडीएम के खिलाफ कोई शिकायत कहीं दर्ज हुई। बावजूद इसके सरकार ने सबकुछ खुद ही सोच लिया और नतीजा सामने है। हैरानी इस बात को भी लेकर होती है कि अखिलेश यादव ने अपने सत्ता संभालने के बाद से अब तक 27 दंगे होने की बात कही है लेकिन यह कभी नहीं बताया कि उन दंगों को रोकने के लिए सरकार ने क्या कोई कोशिश की थी।
अब जबकि समाजवादी नेता और यूपी एग्रो के चेयरमैन नरेंद्र भाटी ने यह कबूल कर लिया है कि उनके ही फोन काॅल के बाद दुर्गा शक्ति का निलंबन हुआ तो साफ हो जाता है कि अखिलेश सरकार में सत्ता के कई केंद्र हो चुके हैं। अखिलेश यादव का बतौर मुख्यमंत्री सरकार पर कोई नियंत्रण भी नहीं रह गया है। नरेंद्र भाटी का भाषण कई बातों की ओर इशारा करता है। नरेंद्र भाटी अपने भाषण में दुर्गा शक्ति के प्रति अपनी नाराजगी को बेहद आपत्तिजनक भाषा के इस्तमाल के जरिए जता रहे हैं। इससे साफ होता है यूपी सरकार में नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों के रिश्ते मधुर नहीं हैं। राज्य की इन दो प्रमुख ईकाइयों के बीच गहरी खाई है। यह बात कुछ दिनों पूर्व प्रतापगढ़ के कुंडा में डीएसपी की हत्या के बाद भी सामने आई थी। सरकारी कर्मचारी अपने को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं और शायद वह हैं भी नहीं। इलाहाबाद में सरेराह एक दरोगा की हुई हत्या यह साबित करने के लिए काफी है। नरेंद्र भाटी ने अपने भाषण में यह भी बताने की कोशिश की है उनका मुलायम और अखिलेश से सीधा संपर्क है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि अखिलेश यादव को रिमोट के जरिए संचालित किया जा रहा है। मुलायम से लेकर शिवपाल और आजम खां तक इस प्रतापी पुत्र को अपने हिसाब से चला रहे हैं। हालात यह हैं नरेंद्र भाटी जैसे नेता भी सीएम पर एक आईएएस के निलंबन के लिए दबाव डालने में सफल हो जाते हैं।
यूपी में अखिलेश यादव ने जब सत्ता संभाली थी तो सूबे के साथ साथ पूरे देश के लोगों को उम्मीद थी कि भारत के सबसे बड़े राज्य और राजनीतिक रूप से बेहद अहम राज्य की एक नई और विकसित तस्वीर हमारे सामने होगी। लेकिन अब धीरे धीरे अखिलेश का मायाजाल टूटने लगा है। साफ दिखने लगा है कि अखिलेश यादव महज मोहरे के रूप में इस्तमाल हो रहे हैं। पूरे प्रदेश में एक अजीब सी अराजकता है। यह ठीक वैसी ही है जैसी कभी मुलायम के मुख्यमंत्रीत्व काल में हुआ करती थी। सत्ता के कई कंेद्र हो चुके हैं। तंत्र प्रभावी नहीं रह गया है। अखिलेश यादव ने हालात सुधारने की तमाम कोशिशें कीं लेकिन स्थिती बदली नहीं। अब तो जनता भी मुफ्त में बंटने लैपटाप से अधिक कानून व्यवस्था की बातें कर रही हैं। हत्या, बलात्कार, दंगे सपा सरकार की पहचान बन चुके हैं। ऐसे में 2014 में पीएम बनने का सपना पालने वाले मुलायम के लिए दुश्वारियां खड़ी हो सकती हैं। यूपी की 80 में से 40 लोकसभा सीटों को जीतने का ख्वाब देख रही समाजवादी पार्टी अपने ही जाल में फंसती जा रही है। एक तरफ जनता को लगने लगा है कि सपा को विधानसभा चुनावों में वोट देकर गलती की तो वहीं सपा के थिंकटैंक को लग रहा है कि अखिलेश पर जरूरत से अधिक नियंत्रण ने वोट बैंक पर से कंट्रोल खत्म कर दिया है। ऐसे में आने वाले दिनों में स्थिती को संभालना अखिलेश यादव के लिए बेहद मुश्किल होगा।
अब जबकि समाजवादी नेता और यूपी एग्रो के चेयरमैन नरेंद्र भाटी ने यह कबूल कर लिया है कि उनके ही फोन काॅल के बाद दुर्गा शक्ति का निलंबन हुआ तो साफ हो जाता है कि अखिलेश सरकार में सत्ता के कई केंद्र हो चुके हैं। अखिलेश यादव का बतौर मुख्यमंत्री सरकार पर कोई नियंत्रण भी नहीं रह गया है। नरेंद्र भाटी का भाषण कई बातों की ओर इशारा करता है। नरेंद्र भाटी अपने भाषण में दुर्गा शक्ति के प्रति अपनी नाराजगी को बेहद आपत्तिजनक भाषा के इस्तमाल के जरिए जता रहे हैं। इससे साफ होता है यूपी सरकार में नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों के रिश्ते मधुर नहीं हैं। राज्य की इन दो प्रमुख ईकाइयों के बीच गहरी खाई है। यह बात कुछ दिनों पूर्व प्रतापगढ़ के कुंडा में डीएसपी की हत्या के बाद भी सामने आई थी। सरकारी कर्मचारी अपने को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं और शायद वह हैं भी नहीं। इलाहाबाद में सरेराह एक दरोगा की हुई हत्या यह साबित करने के लिए काफी है। नरेंद्र भाटी ने अपने भाषण में यह भी बताने की कोशिश की है उनका मुलायम और अखिलेश से सीधा संपर्क है। इससे एक बात स्पष्ट होती है कि अखिलेश यादव को रिमोट के जरिए संचालित किया जा रहा है। मुलायम से लेकर शिवपाल और आजम खां तक इस प्रतापी पुत्र को अपने हिसाब से चला रहे हैं। हालात यह हैं नरेंद्र भाटी जैसे नेता भी सीएम पर एक आईएएस के निलंबन के लिए दबाव डालने में सफल हो जाते हैं।
यूपी में अखिलेश यादव ने जब सत्ता संभाली थी तो सूबे के साथ साथ पूरे देश के लोगों को उम्मीद थी कि भारत के सबसे बड़े राज्य और राजनीतिक रूप से बेहद अहम राज्य की एक नई और विकसित तस्वीर हमारे सामने होगी। लेकिन अब धीरे धीरे अखिलेश का मायाजाल टूटने लगा है। साफ दिखने लगा है कि अखिलेश यादव महज मोहरे के रूप में इस्तमाल हो रहे हैं। पूरे प्रदेश में एक अजीब सी अराजकता है। यह ठीक वैसी ही है जैसी कभी मुलायम के मुख्यमंत्रीत्व काल में हुआ करती थी। सत्ता के कई कंेद्र हो चुके हैं। तंत्र प्रभावी नहीं रह गया है। अखिलेश यादव ने हालात सुधारने की तमाम कोशिशें कीं लेकिन स्थिती बदली नहीं। अब तो जनता भी मुफ्त में बंटने लैपटाप से अधिक कानून व्यवस्था की बातें कर रही हैं। हत्या, बलात्कार, दंगे सपा सरकार की पहचान बन चुके हैं। ऐसे में 2014 में पीएम बनने का सपना पालने वाले मुलायम के लिए दुश्वारियां खड़ी हो सकती हैं। यूपी की 80 में से 40 लोकसभा सीटों को जीतने का ख्वाब देख रही समाजवादी पार्टी अपने ही जाल में फंसती जा रही है। एक तरफ जनता को लगने लगा है कि सपा को विधानसभा चुनावों में वोट देकर गलती की तो वहीं सपा के थिंकटैंक को लग रहा है कि अखिलेश पर जरूरत से अधिक नियंत्रण ने वोट बैंक पर से कंट्रोल खत्म कर दिया है। ऐसे में आने वाले दिनों में स्थिती को संभालना अखिलेश यादव के लिए बेहद मुश्किल होगा।
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