चुनाव से पहले हर बात के लिए जनता से एसएमएस मंगाने
वाले स्वघोषित महापुरुष अरविंद केजरीवाल का एसएमएस पैक अब खत्म हो गया है। अब उनके
पास जनता का एसएमएस पढ़ने का समय नहीं है। यही वजह है कि अब अरविंद केजरीवाल वैट
प्रतिशत बढ़ाने से पहले जनता से राय शुमारी नहीं करते। यही वजह है कि अपने प्रचार
पर 526 करोड़ रुपए खर्च करने से पहले वो जनता से नहीं पूछते। जाहिर है कि अरविंद
केजरीवाल भी उसी रास्ते पर चल चुके हैं जिस पर देश के अन्य राजनीतिक दल चल रहे
हैं। मुलभूत प्रश्न ये है कि क्या अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के साथ
विश्वासघात किया है या फिर दिल्ली की जनता का राजनीतिक प्रयोग अब धीरे धीरे गलत
साबित होने लगा है।
अरविंद केजरीवाल ने भारतीय जनमानस के उस साठ फीसदी
हिस्से में उम्मीद की अलख जगाई जिसे हम युवा कहते हैं। हालांकि लोकतांत्रिक
व्यवस्था की गहरी जानकारी रखने वालों को अरविंद केजरीवाल से कोई बड़ी उम्मीद पहले
से ही नहीं थी लेकिन फिर भी अरविंद केजरीवाल को लोग एक बार देखना चाहते थे। अरविंद
केजरीवाल की जनसभाओं में युवाओं ने बड़ी संख्या में शिरकत की। कइयों ने अपनी अच्छी
तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ कर अरविंद का साथ पकड़ा और वालंटियर बन गए। इन सब को
अरविंद केजरीवाल से यही उम्मीद थी कि आम आदमी पार्टी की सरकार सही माएनों में आम
आदमी की ही सरकार होगी। राजनीतिक सुचिता का सपना सभी की आंखों में एक बार फिर से
तैरने लगा था। अरविंद केजरीवाल चूंकि अन्ना के मंच से निकलकर आए थे लिहाजा लोगों
को अरविंद केजरीवाल पर भरोसा था लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो कुछ हुआ उससे अरविंद
केजरीवाल ने अपने ही वादों को गलत साबित कर दिया है।
अरविंद केजरीवाल, आम आदमी पार्टी को वैसे ही चला रहे
हैं जैसे बहुजन समाज पार्टी को काशीराम ने चलाया और मायावती चला रहीं हैं। आम आदमी
पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र मजबूत है इस बात को लेकर सभी को संशय है। अरविंद
केजरीवाल के विधायकों के कृत्य तो सभी के सामने आ गए हैं। साफ हो चुका है कि
अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी सख्त हिदायत नहीं दे पाए
बेईमानी से बचने की। अरविंद केजरीवाल अपने स्वार्थी साथियों के साथ काम करते रहे
और उन्हें भनक नहीं लगी।
अरविंद केजरीवाल ने अपने और अपनी सरकार के प्रचार पर
शुरुआती दौर में ही 526 करोड़ रुपए खर्च कर डाले। हैरान करने वाली बात ये कि
अरविंद केजरीवाल ने इस भारी भरकम खर्च को राज्य के अन्य विभागों के बजट को काट कर
किया है। जाहिर है कि सरकार के अन्य विभागों के पास अपनी योजनाओं का प्रचार प्रसार
करने के लिए बजट कम पड़ जाएगा। अरविंद केजरीवाल का प्रचार अभियान तार्किक रूप से
भी सही नहीं बैठता। यदि अलग अलग विभाग अपनी अपनी योजनाओं का प्रचार करते तो बेहतर
और व्यापक संदेश प्रसारित करते लेकिन शायद उसमें अरविंद केजरीवाल को इतना मौका
नहीं मिलता। विभागों के जरिए प्रचार में केंद्र सरकार को कोसने का मौका भी अरविंद
केजरीवाल के हाथ नहीं आता लिहाजा अरविंद केजरीवाल ने विभागों का बजट कम किया और
अपना गुणगान शुरू कर दिया।
अब सवाल ये उठता है कि क्या 526 करोड़ का भारी भरकम
बजट खर्च करना अरविंद केजरीवाल के लिए जरूरी था। बात बात में जनमन संग्रह कराने की
सलाह देने वाले अरविंद केजरीवाल ने 526 करोड़ खर्च करने से पहले एक बार भी जनता से
पूछने की जहमत क्यों नहीं उठाई। क्या अब अरविंद केजरीवाल को जनता से डर लगने लगा
है।
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