भारत के खिलाफ बोलना मालदीव को अब भारी पड़ने लगा है। हालात यहां तक बिगड़ गए हैं कि मालदीव की मौजूदा सरकार के खिलाफ अब अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है। माना जा रहा है कि भारत और भारत के प्रधानमंत्री के लिए नफरत भरे बयान के बाद मालदीव की मौजूदा सरकार गिर सकती है। आगे बढ़े इससे पहले कुछ पुरानी बातें याद कर लेते हैं।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने एक बयान में कहा था कि-
हम अपने दुश्मन तो चुन सकते हैं पर पड़ोसी नहीं, रिश्ते तो चुन सकते हैं पर रिश्तेदार नहीं।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का ये बयान न सिर्फ
भारत बल्कि उसके पड़ोसियों के लिए भी बेहद अहम माना जाता है।
अटल बिहारी बाजपेयी अपने कार्यकाल
में अपनी इस लाइन पर चलते भी रहे। यही वजह रही कि अटल बिहारी बाजपेयी के दौर में
भारत ने पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने की हर संभव कोशिश की। कभी बैठकें हुईं
तो कभी बसें चलीं।
हालांकि पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज
नहीं आया और आखिरकार अमन की ये कोशिशें बंद कर दी गईं।
समय बदला और नीतियां भी बदल गईं
समय बदला, सत्ता बदली और 2014 में
भारत में राजनीति का एक नया दौर शुरु हुआ। ये दौर नरेंद्र मोदी का था।
नरेंद्र मोदी ने भी शुरु में
पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाने की कोशिश की। हालांकि इसे कुछ पड़ोसियों ने
भारत की कायरता समझी और पीठ में छुरा भोंकने लगे।
लेकिन इस बार बात कुछ और थी। यूं तो
भारत हमेशा से अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ अच्छे संबंध का पक्षधर रहा है कि लेकिन
ये भारत की अस्मिता की कीमत पर तो नहीं हो सकता। धीरे धीरे भारत ने ऐसी पहलों को
सीमित कर लिया और पडोसी देशों को उन्ही की भाषा में जवाब देना शुरु कर दिया।
दरअसल हम ये बातें आपको इसलिए याद
दिला रहें हैं ताकि आप भारत और मालदीव के मौजूदा रिश्तों को और बेहतर तरीके से समझ
पाएं।
हाल ही में जब मालदीव के तीन डिप्टी
मिनिस्टर्स ने भारत के खिलाफ जहर उगला तो उन्हे भी शायद नहीं पता रहा होगा कि भारत
के खिलाफ जहर उगलना न सिर्फ उन्हे बल्कि उनके देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी
पड़ने वाला है।
भारत के खिलाफ बयानबाजी को लेकर
मालदीव की मौजूदा सरकार पर इतना दबाव पड़ा कि उसे अपने तीन डिप्टी मिनिस्टर्स को
बर्खास्त करना पड़ गया।
लेकिन बात यहीं तक नहीं रुकी। तीर कमान से निकल चुका था। भारत में मालदीव के खिलाफ माहौल बन चुका था और पीएम नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद भारत के ही लक्ष्यद्वीप की खूबसूरती सबके जेहन में ताजा हो चुकी थी।
अर्थव्यवस्था पर हुई चोट ने कर दिया परेशान
मालदीव की अर्थव्यवस्था पर हुई चोट
ने उसे परेशान कर दिया। इस बीच मालदीव के राष्ट्रपति ने एक और गलती कर दी। वो चीन
के दौरे पर निकल गए। भारत से मिली चोट पर मरहम लगाने के लिए मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइजू चीन सरकार के सामने गिड़गिड़ाने
लगे। उन्होंने चीन सरकार से मांग की वो और अधिक पर्यटक मालदीव भेजे।
यही नहीं मालदीव के राष्ट्रपति ने चीन से कई और परियोजनाओं में
आर्थिक मदद की गुहार भी लगाई है।
मालदीव
और चीन ने वाणिज्यिक केंद्र विकसित करने के लिए 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना पर भी हस्ताक्षर
किए हैं।
हालांकि भारत से बैर और चीन से यारी
दिखाना मालदीव के राष्ट्रपति को भारी पड़ गया। अब उनके ही देश में उनके खिलाफ अविश्वास
प्रस्ताव की मांग की जा रही है। मालदीव के नेता अली अजीम ने अपने एक्स हैंडल पर
लिखा कि क्या राष्ट्रपति मोहम्मद मोइजू को हटाने की तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं।
क्या उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है।
इस पूरे घटना क्रम के बाद कुछ बड़े
सवाल खड़े होते हैं। मसलन
क्या भारत से बैर मालदीव को भारी पड़ रहा है ?
क्या चीन से यारी निभाना मालदीव के लिए भविष्य में नई मुश्किलें खड़ी कर सकता है ?
मालदीव और भारत के बीच पनपे इस विवाद
के बीच अब मालदीव में एक बड़ा वर्ग भारत के पक्ष में दिख रहा है। भारत से मालदीव
जाने वाले पर्यटक न सिर्फ वहां की इकोनॉमी को मजबूत बनाते हैं बल्कि कई और मामलों
में भारत मालदीव की मदद करता रहा है।
जाहिर है कि भारत के विरोध में जो भी
बोलेगा उसका विरोध होना ही चाहिए। लेकिन क्या आपको पता है कि मालदीव में अगर
भारतीयों ने जाना बंद कर दिया तो मालदीव बर्बादी के कगार पर भी आ सकता है। यही वजह
है कि अब मालदीव की सरकार न सिर्फ बैकफुट पर आ गई है बल्कि मालदीव में ही मालदीव
सरकार के खिलाफ आवाज उठने लगी है।
आइए पहले समझते हैं कि आखिर मालदीव कहां है और यहां पर्यटन के लिहाज से ऐसा क्या है जो भारत में नहीं है?
मालदीव हिंद महासागर में मौजूद एक द्वीपीय देश है। इसे मालदीव द्वीप समूह के नाम से जाना जाता है। वैसे इसका आधिकारिक नाम मालदीव गणराज्य है।
द्वीप देश की भौगोलिकता देखें तो यह मिनिकॉय आईलैंड और चागोस द्वीप समूह के बीच 26 प्रवाल द्वीपों की एक दोहरी चेन के तौर पर दिखता है। भारत के पश्चिमी तट से मालदीव की दूरी (Distance of Maldives from India) 300 नॉटिकल मील के आसपास है। मालदीव जनसंख्या और क्षेत्र के लिहाज से एशिया का सबसे छोटा देश है। 2021 के आंकड़ों के मुताबिक इस देश की कुल आबादी महज पांच लाख 21 हजार के आसपास थी।
अब ये समझते हैं कि आखिर मालदीव में ऐसा क्या है जो भारत के लोग वहां जाते हैं?
दरअसल मालदीव की सबसे बड़ी खूबसूरती
वहां से समुद्र तट हैं। फिरोजी रंग का साफ समुद्री पानी, चमकदार रेत और गहरा नीला
आसमान मालदीव की ओर पर्यटकों को आकर्षित करता है।
इन बातों को समझने के बाद आइए अब
देखते हैं कि मालदीव अगर भारत से रिश्ते बिगाड़ता है तो उसके लिए क्या मुसीबत आ
सकती है।
मालदीव की 30 फीसदी आर्थिक पर्यटन पर निर्भर
दरअसल मालदीव की आर्थिकी पर्यटन पर निर्भर है। मालदीव की इकॉनमी में टूरिज्म का योगदान 28 से 30 फीसदी के आसपास का है। वहीं, फॉरेन एक्सचेंज में 60 फीसदी योगदान टूरिज्म सेक्टर का होता है। मालदीव टूरिज्म डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक 2023 में यहां आए टूरिट्स में सबसे ज्यादा भारतीय थे। इसके बाद रूस और चीनी टूरिस्ट्स पहुंचे। साल 2023 में 13 दिसंबर तक 1,93,693 भारतीय पर्यटक मालदीव गए थे। मालदीव के लोगों के लिए रोजगार का सबसे बड़ा आधार भी टूरिज्म ही है। यहां रोजगार में टूरिज्म का योगदान एक तिहाई से ज्यादा है। वहीं, पर्यटन से जुड़े सेक्टर्स को भी शामिल कर लें तो कुल रोजगार (डायरेक्ट और इनडायरेक्ट) में टूरिज्म की हिस्सेदारी लगभग 70 फीसदी तक पहुंचती है।
अब आप समझ ही सकते हैं कि अगर भारत के पर्यटकों ने मालदीव के रुख मोड़ लिया तो उसका क्या होगा ?
ताजा विवाद के बाद सोशल मीडिया पर बायकॉट मालदीव और चलो लक्षद्वीप
ट्रेंड कर रहा है। हजारों भारतीयों ने मालदीव के लिए अपने फ्लाइट टिकट्स और होटल
बुकिंग्स कैंसिल करा दी हैं। अब आप समझ लीजिए कि भारतीयों ने मालदीव जाना छोड़
दिया तो इस देश की टूरिज्म इंडस्ट्री तबाह हो जाएगी।
वैसे ऐसा नहीं है कि मालदीव की
आर्थिकी में भारत सिर्फ पर्यटन से ही सहायता करता है। बल्कि भारत ने मालदीव के कई
इंफ्रा प्रोजेक्ट्स में पैसा लगा रखा है।
मालदीव में भारत का अब
तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट नेशनल कॉलेज फॉर पुलिसिंग एंड लॉ एनफोर्समेंट है। यह
प्रोजेक्ट 222.98 करोड़ रुपये का है। इसका उद्घाटन विदेश मंत्री डॉ
जयशंकर के दौरे के दौरान हुआ था।
मालदीव भारत से खाने पीने के
बहुत से सामान भी मंगाता है मसलन चावल, फल, सब्जियां। इसके साथ ही दवाएं, और
इंड्रस्टीयल प्रोडक्ट्स भी।
ऑपरेशन कैक्टस से बचाया मालदीव
सिर्फ इतना ही नहीं। भारत ने मालदीव
की कई अहम मौके पर मदद भी की है। मसलन भारत ने 1988 में ऑपरेशन कैक्टस के तहत
मालदीव में तख्तापलट की कोशिशों को रोका। ये वो दौर था जब श्रीलंका के पीपल्स लिबरेशन संगठन और मालदीव के विद्रोहियों
ने 80 सशस्त्र लोगों के साथ देश का तख्ता
पलट करना चाहा। ये विद्रोही राजधानी माले पर कब्जा करने में सफल भी हो गए। मालदीव
के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम ने मदद की गुहार लगाई। पाकिस्तान, सिंगापुर और श्रीलंका से मदद मांगी लेकिन सभी ने मदद देने से इनकार कर दिया। भारत से
भी मदद मांगी। पड़ोसी मुल्क को मुसीबत में देख भारत ने मदद भेजी। भारत ने मदद
मांगे जाने के कुछ ही घंटों के भीतर 500 सैनिकों के साथ
ऑपरेशन कैक्टस शुरू कर दिया। इस ऑपरेशन में कुछ घंटे लगे और भारतीय सैनिकों ने माले को वापस कब्जे में ले लिया। इस ऑपरेशन में
भारत के कई सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान भी दिया।
भारत ने कई और मौके पर भी मालदीव की
मदद की। मसलन सुनामी के दौरान मदद का हाथ बढ़ाया, जल संकट के दौरान मदद की। यहां
तक कि कोरोना काल में वैक्सीन भी मुहैया कराई।
अब आखिर में ये समझना भी जरूरी है कि
आखिर जब भारत और मालदीव के इतने अच्छे रिश्ते रहें हैं तो हालिया दिनों में
रिश्तों में तल्खी क्यों आ गई।
दरअसल भारत और मालदीव के रिश्तों में
कड़वाहट का राज वहां से राष्ट्रपति चुनाव और उसके परिणाम में छिपा है। मालदीव में
हाल ही में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए। इस चुनाव में
पीपुल्स नेशनल कांग्रेस के उम्मीदवार और माले के मेयर मोहम्मद मोइजू ने भारत
समर्थक और निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को हराया और मालदीव के
निर्वाचित राष्ट्रपति बने।
इसी के बाद से भारत और मालदीव के
रिश्तों में कड़वाहट आनी शुरु हो गई। मोहम्मद मोइजू चीन समर्थक माने जाते हैं और
यही वजह है कि वो भारत के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं। मोइजू ने चुनावों से पहले
इंडिया आउट नाम के एक कैंपेन भी चलाया था।
हालांकि अब मोइजू और उनकी सरकार को
समझ में आने लगा है कि भारत से बैर का खामियाजा उन्हे देश की अर्थव्यवस्था को चौपट
हो जाने तक भुगतना पड़ सकता है। यही वजह है कि जब उनके ही मंत्रियों ने भारत के खिलाफ
विवादित बयान दिए तो मंत्रियों को ही सस्पेंड कर दिया गया।
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