अब यह संकल्प लेना होगा इस देश में रहने वाले राजनीतिक रूप से तो आजाद हैं लेकिन मानसिक रूप से आजादी का टुकड़ा भर भी हम आज तक हम नहीं ले पाये हैं. जिन संघर्षों और आंदोलनों के सहारे हमें आजादी मिली आज हम उन्हें ही महत्व नहीं देते हैं. शहीदों की शहादत पर भी वक्त-बेवक्त प्रश्नचिह्न लगाने वाले कम नहीं हैं. इतने के बाद अगर किसी ने टोक दिया तो उसे संविधान की दुहाई दी जाती है. कहा जाता है कि संविधान में हर एक को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है. अब जब संविधान की ही दुहाई दे दी तो कोई क्या करेगा? आजादी की लड़ाई लडऩे में महात्मा गांधी का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है. महात्मा गांधी और संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर के विचार कभी एक नहीं रहे. यहां तक की स्वतंत्रता आंदोलन में भी बाबा और बापू का मतभेद नजर आता है. कई गोष्ठियों में बाबा भीमराव ने देश में दलितों और शोषित वर्गों के लिए आंदोलन करने को ज्यादा तरजीह दी बजाए इसके कि अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी जाए. गांधी जी ने कई बार इसका विरोध किया. यही वजह थी बाबा और बापू आपको बहुत कम स्थानों पर ही एक साथ नजर आयेंगे. अंग्रेजों से जंग जीतने क
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर