फाल्गुन के बारे में जितना कहा जाये उतना कम ही होता है ...... अभी तक न जाने कितने कवियों ने अपनी लेखनी को इस फल्गुम के मौसम के नाम कर दिया है ...... फाल्गुन की पूर्णिमा को होली का जो त्यौहार मनाया जाता है वोह अब महज रंग लगाने का एक दिन रह गया है .... होली पर अब होलियार्रों की टोली गली मोह्हलों में नहीं दिखती है ...... घर के बड़े बूढ़े नुक्कड़ पर होलियाना अंदाज़ में नहीं दिखाई देते ..... होरी गाने की तो परंपरा भी मानो ख़त्म सी हो गयी है ..... होली ना सिर्फ एक त्योहार है बल्कि एक उत्सव है ..... मनुष्य जीवन में उल्लास के क्षणों को भरने का एक जरिया है ...... स्वंतंत्र और स्वछंद होने के बीच के महीन से अंतर को बताने का माध्यम भी है होली .... पहले कि होली तो अपनों का प्यार मांगती थी .... बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद और दुलार मांगती थी लेकिन आज कि होली तो बाज़ार मांगती है .... आज होली कि ख़ुशी तो बाज़ार में मिलती है ... गुझिया , पापड़ , चिप्प्स स...
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर