मुझे इस बात का पक्का यकीन तो नहीं लेकिन शायद मेरी लेखनी से निकले शब्दों के पास खुद पर खुश होने के सिवा कोई और विकल्प नहीं होता है. लेकिन फिर भी अपने दोस्तों द्वारा पिछले कई दिनों से अपनी आभासी पुस्तिका पर ना लिख पाने की वजहों के बारे में पूछा जाना सुखद रहा. लगने लगा कि रगों में लिपटी एक आग जब कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर शब्द दर शब्द उतरती है है तो कुछ एक यार दोस्त उस आग को धधकते, सुलगते, हाहाकार करते देख खुश होते हैं. शुक्रिया दोस्तों. वैसे जलने का अपना मजा होता है. यकीन जानिए इस बात का पता मुझे भी तब चला जब मैंने जलना सीख लिया. एक ऐसी आग में जो आपको जला कर राख नहीं स्वर्ण बना देती है. बेचेहरा हवाओं में, बेतरतीब बादलों में आपको मकसद नज़र आने लगता है. एक बाँध सा होता है जो उसके स्नेह ज्वार के आने के साथ ही टूट जाता है और आप जी भर के सांस लेते हैं. इसके बाद आपको एक नव जीवन मिलता है. एक गहरी सांस और उसके साथ घुली हुई एक नरगिसी खुशबु. सब कुछ क्षण भर में ही हो जाता है लेकिन हाथों में आया यह मुट्ठी भर आसमान आपको विश्व विजेता होने का एहसास दिला जाता है. अब इसे विरोधाभास कह लीजिये लेकिन अगले
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर