चौंसठ सालों से हम सब अपनी थूक इसलिए निगलते आ रहे हैं क्योंकि सरकारी कागजों में सार्वजनिक स्थानों पर थूकना अपराध है। लिहाजा घोंट कर ही काम चलाना पड़ता है। लेकिन आज जब मौका मिला है तो देश का आम आदमी पीछे नहीं रहना चाहता है। वो जी भर के थूकना चाहता है उस सिस्टम के मुंह पर जो उसे आम आदमी का नाम तो देता है लेकिन सहूलियत जानवरों से भी बदतर। यही वजह है कि मुझे भी थूक पार्ट टू लिखने की अन्र्तप्रेरणा मिली। कुछ लोगों को जरूर बुरा लगा होगा और लग भी रहा होगा इसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं। लेकिन एक बात भी लगे हाथ बता देना चाहता हूं कि अगर आज आपने इस सड़ चुके सिस्टम पर नहीं थूका तो आपका कल आप पर थूकेगा। मर्जी आपकी आखिर मुंह है आपका। सरकार कहती है कि अन्ना और उनकी टीम पूरे देश का नेतृत्व नहीं कर सकते। सिविल सोसाइटी की नुमांइदगी चार-पांच लोगों को नहीं दी जा सकती। मैं भी इस बात से इतेफाक रखता हूं लेकिन मुझे लगता है कि सरकार की आंखों पर अहम का चश्मा लगा हुआ है। तभी तो उसे दिल्ली से लेकर चेन्नई तक हो रहे आंदोलन नहीं दिख रहे। लाखों लोग सड़कों पर हैं तो फिर किस बात का सबूत चाहती है सरकार? अगर देश का कानून द
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर