देश में लोकतंत्र बेहद मजबूत हो गया है लेकिन लोगों की बातें इस तंत्र में नहीं सुनी जाती....लोग बोलते बोलते थक चुके हैं और अब तो मुर्दई ख़ामोशी ओढ़ कर चुप बैठे हैं.....लोकतंत्र का उत्सव मनाया जाता है लेकिन शवों के साथ....कौम सांस लेती तो है लेकिन है मुर्दा...ऐसे में तसल्ली देती है एक मुहिम...अपने अधिकारों की भीख मांग- मांग कर थक चुके बच्चों ने अब वादाई कफ़न उतार दिया है और एक जिंदा कौम की तरह इंतज़ार नहीं करना चाहते....अब वो अपनी राह खुद बना रहें हैं...मंजिलें उन्हें मालूम है और सहारा उन्हें चाहिए नहीं......मैं बात कर रहा हूँ वाराणसी में बनाई गयी दुनिया कि पहली और अभी तक एकमात्र निर्वाचित बाल संसद की.... ये बाल संसद समाज के उस तबके के बच्चों की आवाज बुलंद कर रही है जहाँ तक किसी भी सरकार की योजनायें अपनी पहुँच नहीं बना पाती....इस संसद का गठन दो वर्षों पूर्व वाराणसी की एक स्वयं सेवी संस्था विशाल भारत संस्थान ने किया था ......हालाँकि अब ये संसद अपने तरीके से काम कर रही है...विशाल भारत संस्थान मुख्य रूप से समाज के गरीब तबके के बच्चों के लिए काम करती है...कूड़ा बीनने वाले और गरीब
न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर